राम सिंह की आंखे न होना ,उनकी प्रगति में नहीं बनीं बाधा। राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले के निवासी राम सिंह की दोनों आंखे उनके जन्म से ही नहीं हैं लेकिन वे इसे अपनी कमजोरी कतई नहीं मानते हैं। वे सारी बाधाओं को पार करके देश की प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी से पीएचडी कर रहे हैं। उनकी स्कूल तक की पढ़ाई उनके गृह राज्य राजस्थान के साथ देहरादून से भी हुई है। स्नातक की पढ़ाई दिल्ली यूनिवर्सिटी और परास्नातक की पढ़ाई जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी से हुई है।वर्तमान में जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी से यूरोपीय स्टडीज से पीएचडी कर रहे हैं। इनको मोबाइल और लैपटॉप का जरूरी ज्ञान भी है। वे मोबाइल और लैपटॉप का उपयोग स्क्रीन पर लिखा हुआ पढ़ने वाले फीचर से बखूबी कर लेते हैं।वे कंप्यूटर में टाइपिंग भी कर लेते हैं। उनको तकनीकी जानकारियां रखने में बहुत रूचि है। वे आगे अपने समुदाय के लोगों बारे में बताते हुए कहते हैं कि हमारे समुदाय के लोग सुनने,सूंघने और छूने को ज्यादा मजबूत बनाते हैं। राम सिंह कहते हैं कि परेशानियां दो तरीके की होती हैं एक वास्तविक परेशानी और दूसरी लोगों और समाज द्वारा तैयार की गई परेशानी। वे सामान्य जीवन का उदाहरण देते हुए बताते हैं कि हम चलना तो चाहते हैं लेकिन फुटपाथ फ्री नहीं है। जबकि फुटपाथ आसानी से खाली किये जा सकते हैं लेकिन लोग अपने आराम को ज्यादा वरीयता देते हैं। समाज में समानता का भाव नहीं है। उनका मानना है कि ऐसा व्यक्ति जो कथित तौर पर आंखो से देख नहीं सकता है वह सबसे ज्यादा बदलाव की क्षमता रखता है। उसकी सोचने और समझने की क्षमता आम लोगों की तुलना में ज्यादा बेहतर और अच्छी होती है। ऐसे लोग जीवन में सब कुछ कर सकते हैं। ऐसे लोगों को संसार को समझने का प्रयास करना चाहिए। राम सिंह बताते हैं कि हमारे समुदाय के लोगों के पास अद्भुत कला है। वे कहते हैं कि मेरे सिर्फ आंखें नहीं हैं। यह केवल एक कमी है। महाराष्ट्र में एक इंटरव्यू के दौरान जब उनसे दिव्यांग कहा गया तब उन्होंने जवाब दिया कि हमारे पास ऐसा कौन सा अंग है जो हमें दिव्य बनाता है। उनका मानना है कि हमारे समुदाय के लोगों को दिव्यांग की जगह विकलांग कहा जाए। वे नई युवा पीढ़ी खासतौर पर बच्चों को समझाते हुए कहते हैं कि जो आपके आसपास हो रहा है सब कुछ समझने का प्रयास करिए और जो आपको पसंद है पढ़ाई , खेल उसमें अपना पूरा मन डालिए। लेकिन सवाल जरूर करिए क्योंकि सवाल पूछना बंद करेंगे उसी दिन से आपकी शिक्षा खत्म हो जाएगी। आपके जीवन को बदलने वाली कौन-सी घटना थी ? जब आप कुछ अच्छा करने की सोचते हैं तो रास्ते खुद व खुद बन जाते हैं। मेरी कक्षा दो के दौरान हॉस्टल वार्डन ने कहा कि तुम बहुत बोलते हो , नेता हो क्या? बस यही बात दिल में लग गई। फिल्मों में भी बड़ी दिलचस्पी थी। फिल्मों को देखकर लगा कि मैं वकील बनूंगा। कक्षा तीन चार तक मैथ बहुत अच्छा लगता था लेकिन आम लोगों को गणित पढ़ाने वाले अध्यापकों की बहुत कमी है। यहां से फिर गणित में कुछ करने की इच्छा खत्म हो गई और वकील बनने की भी इच्छा खत्म हो गई। फिर मुझे क्रिकेट का शौक जागा मैंने सोचा कि मैं क्रिकेट खेलूंगा। क्रिकेट में ऑफ साइड पर शॉट लगाना मुझे काफी पसंद है। मैंने सोचा मैं भी ऑफ साइड पर शॉट लगाऊंगा। लेकिन समय के साथ यह इच्छा भी खत्म हो गई। आपका दैनिक जीवन कैसे चलता है? एक उदाहरण से आपको समझाता हूं। एक बालक जो कभी बोल नहीं सकता है। वह भी अपनी बात इशारों से समझाने का प्रयास करता है ठीक उसी तरह हमारे पैरों के नीचे क्या आया है ,आसपास का वातावरण क्या है ,उसके हिसाब से सुनते हैं तो सब पता चल जाता है। कमरा में बोलने पर आवाज टकराकर वापस आती है उससे यह आभास हो जाता है कि कमरा कितना बड़ा है मेरी दैनिक क्रिया इसी तरह चलती है। हम पूरे विश्व में कहीं भी अकेले जा सकते हैं। लगभग आधा भारत हमने अकेले ही घूमा है। जेएनयू तक कैसे पहुंचे ? मैं जब दिल्ली यूनिवर्सिटी से स्नातक की पढ़ाई कर रहा था। तब मेरे सीनियर मुझे घुमाने के लिए जेएनयू आते थे। यहां से लगा कि मैं अपना मास्टर्स पॉलिटिकल और इंटरनेशनल स्टडीज में जेएनयू से करूंगा। फिर जेएनयू आकर लगा कि यूरोपियन स्टडीज में पीएचडी करनी चाहिए। पीएचडी के लिए किसने मार्गदर्शन किया ? मेरे बहुत अच्छे मित्र कार्तिक हैं जिन्होंने पीएचडी के लिए मेरा मार्गदर्शन किया और मेरी इंटरव्यू की तैयारी भी करवाई। मनोहर और प्रतीक हमारे दोनों ऐसे साथी हैं जिन्होंने हमें पीएचडी के विषय का आइडिया दिया। जेएनयू में दाखिले के लिए छात्रों में होड़ क्यों है ? जेएनयू एक मंच है जहां आप अपने अंदर परिवर्तन कर सकते हो। परिवर्तन का मतलब है आप अपने ऊपर कितना काम कर सकते हो। जेएनयू में सुविधायें बहुत हैं इसमें कोई संदेह की बात नहीं है। जो आगे बढ़ने में छात्रों की मदद करतीं हैं। अगर आपके पास लैपटॉप वगैरह नहीं है तो आपको पढ़ने के लिए लैपटॉप भी मिल जाता है। जेएनयू की आजादी का सच क्या है ? जेएनयू को न्यूज़ में ऐसा दिखाया जाता है वास्तविकता में जेएनयू ऐसा नहीं है। आप देखेंगे तो आपको पता लगेगा कि अकादमिक और सिविल सर्विस में सबसे अच्छी भूमिका जेएनयू निभाता है। अगर आप तार्किकता से सोचेंगे तो आपको समझ में आएगा कि जो यूनिवर्सिटी इतनी बदनाम हो वहां से टॉपर कैसे निकल सकते हैं फिर ऐसी उम्मीद क्यों लगाई जाती है कि यहां से टॉपर निकलेंगे। जेएनयू में सस्ती शिक्षा और सुविधाएं हैं।जेएनयू एक खूबसूरत , सुकूनभरी और आदर्श जगह है बच्चों के पढ़ने के लिए। अगर आपको जेएनयू के बारे में जानना है तो आप जेएनयू के बारे में खुद पढ़िए , किसी से सुनिए नहीं। तब आपको जेएनयू का सच मालूम पड़ेगा। जेएनयू में गुटबाजी क्यों है ? गुटबाजी सब जगह होती है। जब गुटबाजी से जेएनयू के छात्रों को दिक्कत नहीं है तो बाहर के लोगों को इससे क्या दिक्कत है। सब यूनिवर्सिटियों में गुटबाजी होती है। यहां तक की हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में भी गुटबाजी होती है। आप लगभग 18 से 40 वर्ष तक के युवाओं को यूनिवर्सिटी में दाखिला देते हैं और उनसे उम्मीद रखते हैं कि वे स्कूल के बच्चों की तरह रहें। तब तो यूनिवर्सिटी और स्कूल में फर्क ही क्या रहा। एक यूनिवर्सिटी को लगातार टारगेट करना उस यूनिवर्सिटी को खत्म करने के बराबर है। यूनिवर्सिटी को टारगेट नहीं किया जाना चाहिए यूनिवर्सिटियों को खुला छोड़ देना चाहिए। क्या संसद में भी आपकी बात कहने वाला कोई आपके समुदाय से होना चाहिए ? बिल्कुल होना चाहिए लेकिन सरकारें वोट बैंक की राजनीति करतीं हैं। हमारा समुदाय वोट बैंक के हिसाब से अल्पसंख्यक है। जब तक समाज के द्वारा नि: शक्त व्यक्तियों को स्वीकार नहीं किया जाएगा। तब तक सरकारें भी इस ओर ध्यान नहीं देगी। आप किस डॉक्यूमेंट्री में काम कर चुके हैं ? मैंने कभी जिंदगी में ऐसा नहीं सोचा था कि बीबीसी वाले हमें डॉक्यूमेंट्री में लेंगे। बीबीसी पर मेरी एक डॉक्यूमेंट्री जिसका नाम हाउ टू ब्लाइंड इन दिल्ली है।मेरे एक साथी ने मेरे साथ एक वेब सीरीज भी सूट की है। मैंने यह सब कभी नहीं सोचा था कि मैं यह भी कर सकता हूं। मैं इसको बड़ी उपलब्धि तो नहीं मानता हूं लेकिन मुझे इस बात का गर्व है कि मैंने इस फील्ड में भी अपना हाथ आजमाया है। BBC DOCUMENTARY -https://youtu.be/x1mG2dAYm30?si=BmfcikdfO3csLOBn
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जो व्यक्ति आंखो से देख नहीं सकता, सबसे ज्यादा बदलाव की क्षमता रखता है - राम सिंह
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