चुनी हुई सरकार या जबरदस्ती थोपी हुई सरकार!

कुछ सरकारें सत्ता में आने के बाद अपने द्वारा जारी किए गए घोषणा पत्र के अनुरूप और राज्य हित में काम नहीं करती हैं। कथिततौर पर कुछ सरकारें निजी स्वार्थ को ध्यान में रखकर भी कार्य करती हैं।उपरोक्त बातों का विश्वास यदि विपक्ष को हो जाए। तब विपक्ष,सत्तादल के विधायकों को अपनी पार्टी को समर्थन देने का प्रस्ताव रखता है जिसमें कथिततौर पर विधायकों की खरीद फरोख्त भी शामिल होती है।

विपक्ष राज्यपाल से फ्लोर टेस्ट की मांग करता है जिसमें यदि सत्ता पक्ष अपना बहुमत साबित नहीं कर पाता है।तब सत्ता पक्ष की सरकार  गिर जाती है । फ्लोर टेस्ट की मांग  एक राज्य में एक से अधिक बार भी हो सकती है। पिछले वर्षों में मध्य प्रदेश , महाराष्ट्र , कर्नाटक समेत कई राज्यों में सरकारें गिरा दी गईं। सरकारों के गिरने के क्रम में राज्य की जनता ने अपने मताधिकार का प्रयोग करके जिसे सत्ता सौपायी थी। जनता ने विकास के मुद्दे पर वोट किया होगा सोचा होगा कि सरकार विकास पर काम करेगी लेकिन वे मुद्दे पीछे रह जाते हैं।

नई सरकार को काम संभालने में समय लग जाता है । देखते ही देखते सरकार का पुराना कार्यकाल खत्म हो जाता है और नया चुनाव होने का ऐलान हो जाता है । अब तो ऐसा लगता है कि किसी भी विधानसभा का कार्यकाल 5 वर्ष ना होकर सिर्फ  ढाई वर्ष हो गया है जिसमें ढाई वर्ष सत्ता पक्ष जिसको जनता ने चुना है। सत्ता का भोग करता है। बाकी बचे ढाई वर्ष में विपक्ष सत्ता में आकर सरकार चलाता है । इसके कारण विकास के काम रुक जाते हैं । 

इस प्रक्रिया पर रोकथाम लगाने के लिए ही 52 वां संविधान संशोधन 1985 में भारतीय संविधान में दसवीं अनुसूची जोड़ी गई जिसमें  कोई भी पार्टी का विधायक तब तक पार्टी नहीं बदल सकता है। जब तक उसके पार्टी के चुने हुए एक तिहाई विधायक, उस पार्टी को छोड़ने को तैयार ना हों। लेकिन आमतौर पर यह कानून आने के बाद भी यह प्रक्रिया नहीं रुक पा रही है।

विपक्ष तथा सत्ताधारी दोनों मिलकर सत्ता का भोग करना चाहते हैं। उनका साफ मतलब है –

"ना तुम करो विकास ,ना हम करें विकास

जनता को अगले चुनाव तक फिर लगाने देते हैं आश।"

जिसे जनता ने अपने मताधिकार का प्रयोग करके सत्ता से विपक्ष का रास्ता दिखाया। वही घुमा फिराकर फिर से सत्ता में आ जाते हैं।अब सवाल ये खड़े होते हैं कि क्या जनता के अधिकार सचमुच कार्य कर रहे हैं ? क्या वास्तव में जनता ही अपनी सरकार को चुनती है ?

दल – बदल विरोधी अधिनियम में विशेष सुधार की आवश्यकता है अन्यथा ऐसे ही सत्ता पक्ष और विपक्ष में सत्ता का हस्तांतरण होता रहेगा। विकास के जरूरी मुद्दे जिसमें शिक्षा ,बेरोजगारी , गरीबी , महंगाई आदि दबे के दबे रह जाएंगे ।

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Kapil Shukla

पत्रकार,भारतीय जनसंचार संस्थान,नई दिल्ली