80 हजार में से 8 सौ रूपये खर्च कर लेओ भैया।ऐसा कुछ साथी राकेश भैया से कह रहे थे।जबकि कुछ साथी एक-दूसरे का मुंह ताक रहे थे,क्योंकि उनको पूरा मामला ही पता नहीं था।यह चर्चा अखबार के एडिटोरियल डिपार्टमेंट की होने वाली दैनिक मीटिंग के दौरान चल रही थी।तभी सब के मन में कौतूहल जागा और फटाक से सब पूछने लगे कि क्या हुआ राकेश भाई।तब राकेश भैया भी कुछ कनपुरिया अंदाज मा अपन आप बीती सुनाइन लाग।
दरअसल राकेश भैया दोपहर में बाजार से कुछ सामान लेकर घर लौटे तो उन्होंने अपनी भाभी और भैया को हैरानी में देखा। वे बताते हैं कि प्रथम दृश्यता कोई कुछ बता नहीं पा रहा था। भाभी बस रोये जा रही थीं।कुछ देर बात तसल्ली से पूछने पर वे सारी बात राकेश को बताती हैं। राकेश की भाभी शीतला कहती हैं कि थाने से पुलिस का फोन आई रहा। कौनो केस मा लड़कवा का पकड़ लीन है।कहत हैं अगर छुड़ान चाहत हो तो तत्काल अकाउंट मा 80 हजार रुपया डरवा देओ।राकेश भैया कहते हैं कि यह सब सुनकर मैं भी अन्दर से हिल गया।चूंकि मैं पत्रकार हूं तो ऐसी खबरों से रोज दो-चार होता हूं।वे कहते हैं कि मेरा दिमाग एकदम जागा और मैंने अपनी भाभी से पूछा कि कौन से थाने से फोन आया है।
भाभी कहती हैं कि वे थाने का नाम नहीं बता रहे,बस याह कही रहे कि रूपया अकाउंट मा डरवा देओ तब हम गोलू का छोड़ दिआव।भाभी की बात सुनकर राकेश को शक हुआ।राकेश तुरंत समझ गए कि दाल में कुछ काला है।उन्होंने तुरंत अपने भाई से पूछा कि गोलू घर से आखिर गया कहां है।भैया मुकेश दबी हुई आवाज में बताते हैं कि गोलू प्रतिदिन घर से प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने के लिए लाइब्रेरी में जाता है और आज भी घर से वहीं गया था,लेकिन पता नहीं ये क्या हो गया।
राकेश तुरंत मुकेश से पूछते हैं कि क्या उन्होंने लाइब्रेरी में जाकर गोलू को देखा है या गोलू को कॉल किया है।मुकेश कहते हैं कि पुलिस की बात सुनकर मैं घबरा गया।पुलिस ने मेरी बात भी गोलू से कराई है। गोलू रो-रोकर कह रहा है कि बचा लो पापा।मेरी तो कुछ भी समझ नहीं आया कि आखिर मैं क्या करूं।इसके बाद मैंने गोलू को कॉल जरूर किया, लेकिन उसका फोन बंद आ रहा था।राकेश का शक अब यकीन में तब्दील हो चुका था कि यह डिजिटल अरेस्ट का मामला लग रहा है।
राकेश बिना देरी करते हुए अपने भैया से लाइब्रेरी का पता पूछकर तुरंत लाइब्रेरी जा पहुंचे। जहां पर पहुंचकर राकेश देखते हैं कि उनका भतीजा गोलू पढ़ाई कर रहा है।गोलू बताता है कि लाइब्रेरी में नेटवर्क की समस्या के कारण उसका फोन नहीं लग रहा था।राकेश भैया ने मीटिंग के दौरान यह भी बताया कि उनके भाई के अकाउंट में पिछले दिनों ही एफडी का चार लाख रूपया आया है।इसका मतलब यह है कि डिजिटल अरेस्ट के नाम पर फ्रॉड करने वालों को यह भी पता होता है कि अकाउंट में कितना पैसा है।जबकि भारत सरकार और पुलिस भी लगातार जागरूक कर रही है कि डिजिटल अरेस्ट नाम की कोई चीज नहीं होती है।
मीटिंग रूम में पूरी कहानी सुनने के बाद सभी साथी राकेश भैया से 8 सौ रूपये खर्च करने की मांग करने लगे। इसी बीच कनपुरिया अंदाज में मीटिंग में बैठे रघुवीर कहते हैं कि भैया मान लेओ अगर लड़कवा कहूं जेह समय राकेश ओखा लाइब्रेरी मा देखें गे रहाएं ओही समय अगर वो कहूं पानी पिएं खातिर कहूं चलो जात तब का होत।एक पुलिस अधिकारी के मुताबिक पुलिस किसी भी व्यक्ति को डिजिटल अरेस्ट नहीं करती है।अगर ऐसी कोई घटना सामने आती है तो तुरंत इसकी शिकायत नजदीकी थाने में करें।
नोट- गोपनीयता बनाये रखने के कारण सभी पात्रों के नाम बदल दिए गए हैं,लेकिन यह कानपुर में मेरे साथी के साथ घटी सच्ची घटना है।
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