अब यूपी में कौनौ गुंडा गर्दी नाही

ऑफिस समय से पहुंचने की जल्दी हो या फिर अपने किसी भी पड़ाव पर समय पहुंचने की बात हो। आज की यात्रा कुछ इसी अंदाज में शुरू हुई। घर के सामने से निकलने वाले रेलवे ट्रेक को पार करते हुए हम पहुंचे भरवारा क्रासिंग वाली रोड पर, जो सहारा हॉस्पिटल के गेट नंबर 3 से होकर हैनीमैन चौराहे तक का सफर तय कराती है। हम इसी सड़क से होते हुए पैदल ही हनीमैन चौराहे पर पहुंचे। वहां पहुंचकर पता चला कि बस ठीक 2 मिनट पहले ही निकल चुकी है। अब हम भी इधर-उधर ताका झांकी करने लगे और देखने लगे कि कोई भूला-भटका ऑटो वाला आ जाए,जो हमको हमारे गंतव्य तक पहुंचा दे। एक ऑटो वाले भैया खचाखच सवारी भरे थे आ पहुंचे हमारे पास,लेकिन कुल मिलाकर बात नहीं बन पाई।

इसके तुरंत बाद मुंह में गुटखा भरे चाचा हमारे पास अपना ऑटो लेकर आ पहुंचे। लखनऊआ लहजे में बोले चलो हमरे साथ हम बीच में उतार दिआव। वहां से पहुंच जइहौ। उन्होंने अपनी बातचीत से हमको राजी कर लिया,लेकिन हमने उनसे पूछा कि कितनी दूरी पड़ेगी जहां आप उतारोगे। कहिन लगे भैया 500 मीटर दूरी होई। फिर क्या था हम भी आज का सफर तय करने निकल पड़े। ऑटो चलता हुआ हनीमैन चौराहे से हुसड़िया चौराहे तक पहुंचा। जहां एक चाचा पूरा मुंह पान से भरे ऑटो को हाथ दे दिए।

अब आखिर ऑटो वाले चाचा कैसे न रोकते। अभी तो उनकी सीट पर इतनी तो जगह बची ही थी कि वो आगे खिसककर उनको भी किसी भी तरीके से बैठा लें। चाचा ने ऐसा ही किया, उनको बैठाया और  गाड़ी चलते-चलते लाल बत्ती तक पहुंची। लाल बत्ती को कुछ लोग आफत की बत्ती मानते हैं। लाल बत्ती पर रूकने में सब लोगों को ऐसा लगता,जैसे इतने समय में बहुत बड़ी डील फिक्स कर लेंगे जल्दी पहुंचकर। लाल बत्ती से हल्का आगे-पीछे होने में एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति के साथ ऑटो वाले चाचा की बहस शुरू हो गई। फिर जैस-तैसे बहस रूकी तब गाड़ी बढ़ी। इतने में ऑटो वाले चाचा का पारा सातवें आसमान पर पहुंच चुका था।

अब ऑटो फिर से आगे बढ़ा,लेकिन तभी पीछे से आ रहे एक दूसरे ऑटो ने ओवरटेक करने की कोशिश की। इस ऑटो में एक बाबा जी बैठे हुए थे, ठीक उसी तरह जैसे मेरे वाले ऑटो में पान वाले चाचा बैठे थे। अंतर बस इतना था कि चाचा के हाथ में कुछ था नहीं। जबकि बाबा के हाथ में भाजपा का बड़ा झंडा था। जो चलते ऑटो में ऐसे लहरा रहा था,जैसे भाजपा की विजय गाथा का संदेश दे रहा हो। बाबा का झंडा देखकर सब चौकन्ने हो गए और सबका ध्यान बाबा के झंडे पर चला गया। अब ऑटो वाले चाचा ने राजनीति की बात शुरू कर दी। चाचा बात कर रहे थे जवाब कोई नहीं दे रहा था, हम भी केवल सर हिला दे रहे थे और बगल में बैठे चाचा हूं,हां करके ही जवाब दे रहे थे। अब बहस गरमा गरम हो चुकी थी। ऑटो वाले चाचा कहिन लाग कि-------

देखो भैया योगी बाबा तो नस पकड़ लीहिस है जनता केरी। अब यूपी में कौनौ गुंडा गर्दी नाही बची। बाबा अइस माहौल तैयार करिस है कि कौनौ अब बाबा का ना ही हटाई सकत। अब चक्कर याहौ है कि जनता के पास दूसर विकल्प ना ही बचा। और सबै पार्टीयां खूब चोरी करो करती हैं। आगे कहिन लाग कि एक ऊ रहें मुलायम सिंह,भैया खूब नेता-नगरी कीहनिन। जब ज्यादा नेता-नगरी होय लागिस तौ भगवानौ सोचिस हुइहै कि भैया अब तुम्हार काम खत्म भा। अब ऊपर अपन नेतागीरी करौ आइकैं। चाचा यहीं नहीं रूके चाचा आगे बोले कि योगी-मोदी जनता का भरोसा दिलाइस हैं कि गुंडागर्दी अब कौनौ कीमत मा बर्दाश्त ना ही कीन जइहै। फिर बोले कि अगर अभईं अखिलेश आ जाएं तो सब नेता अपने बिलन से निकल अइहै। इनका कौनौ तो चाचा निकली कौनौ भतीजा। अब ई ना ही चल पइहै।

चाचा कहिन लाग कि केजरीवाल शुरूआत मा नीक लागत रहै, लेकिन अब उहाऔ अईस घोटाला करिस है कि कहा बतामन। चाचा की बातों को सुनते हुए मैं इतनी जल्दी अपने पड़ाव तक पहुंच गया पता भी नहीं चला।  चाचा मुझे बैठाने से पहले ही कह चुके थे,वहां से पास पड़ेगा। चाचा ने अब हमको उतारा और कहा कि भैया ई पुल का पार करि लेओ और ऊ तरफ चले जाओ। हम भी चाचा को पैसे देकर अपने ऑफिस की तरफ पैदल समय से पहुंचे। आज की यात्रा यहीं समाप्त हुई।

नोट- इस लेख में जिन चौराहों का जिक्र हुआ है। वे लखनऊ शहर के प्रमुख चौराहों में से एक हैं।मैंने यह लेख अपने काम करने वाली जगह यानी नवभारत टाइम्स के दफ्तर जाते समय लिखा है।

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Kapil Shukla

पत्रकार,भारतीय जनसंचार संस्थान,नई दिल्ली