क्या विपक्षी एकता के आगे, मोदी मैजिक होगा फीका साबित ?
देश इस समय आम चुनाव के माहौल से गुजर रहा है। भाजपा नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भ्रष्टाचार, विपक्षी नेताओं के परिवारवाद, राम मंदिर और विकास के मुद्दों पर चुनाव लड़ रही है तो वहीं तमाम विपक्षी पार्टियां अजीब ढंग से 'एकजुट' होकर मोदी को निशाने पर लेकर मैदान में हैं। पश्चिम बंगाल में एक ओर ममता बनर्जी भाजपा से लोहा ले रही हैं, वहीं 'इंडिया' गठबंधन की प्रमुख सदस्य कांग्रेस से भी दो-दो हाथ करती नज़र आ रही हैं। कांग्रेस नेता अधीररंजन चौधरी आए दिन ममता बनर्जी को निशाने पर रखते हैं। तो वहीं टीएमसी भी उनकी राह में कांटे बिछाने में पीछे नहीं हटती। ममता बनर्जी ने जुबानी हमले के साथ-साथ अधीररंजन के खिलाफ बहरामपुर लोकसभा सीट से भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व धाकड़ बल्लेबाज यूसुफ पठान को खड़ा करके वो चाल चल दी है, जिससे कांग्रेस 'काटो तो खून नहीं' वाली स्थिति में आ गयी है। बात करें बिहार की तो यहां भी कांग्रेस और लालू के बीच दबे-छुपे रस्साकस्सी का खेल चल रहा है! पहले तो सीटों के बंटवारे में लंबी खींचतान के बाद गुणा-गणित सामने आया और आरजेडी के खाते में कुल 40 में से 26 सीटें आईं, जबकि कांग्रेस को मात्र 9 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा वहीं वाम दलों के हिस्से 5 सीटें आईं। पूर्णिया सीट पर हाल ही में कांग्रेस में शामिल हुए पप्पू यादव ने काफी पहले ही ताल ठोंकने का एलान किया था और लालू से भेंटकर उनका 'आशीर्वाद' भी लिया था, मगर आरजेडी ने पूर्णिया से बीमा भारती को मैदान में उतारकर अपने सहयोगी दल और उसके नए सदस्य पप्पू यादव को हैरानी में डाल दिया। जहां कांग्रेस ने पप्पू यादव के मामले में अपना हाथ पीछे खींच लिया, वहीं पप्पू यादव अपनी पार्टी का विलय करके कॉंग्रेस पार्टी में शामिल होने का ऐसा सिला पाए कि अपने आंसू तक नहीं छुपा पाए। कांग्रेस ने उनसे पूर्णिया सीट पर चुनाव ना लड़ने को कहा लेकिन पूर्णिया से पर्चा दाखिल कर चुके पप्पू यादव पीछे हटने को तैयार नहीं हुए और जनता की अदालत से न्याय की उम्मीद कर रहे हैं। उधर लालू की पार्टी पूरे दमखम से पूर्णिया में विजय हासिल करने में जुटी है। यूपी में भी विपक्षी एकता काफी समय तक सवालिया निशान पर रही है। पहले सपा द्वारा एक तरफा सीटों के एलान से दृश्य समझ से परे था, बाद में जयंत चौधरी के एनडीए में शामिल हो जाने से 'इंडिया' गठबंधन को जोर का झटका धीरे से लगा है। चुनावों के एलान से पहले स्वामी प्रसाद मौर्य का सपा को छोड़ जाना, ओमप्रकाश राजभर का एनडीए में शामिल हो जाना, जैसे निर्णयों से विपक्षी एकता कमजोर हुई है। कमोबेस ऐसी ही स्थिति कांग्रेस और 'आप' के बीच पंजाब में भी है। ऐसे में जनता विपक्षी एकता पर भरोसा करे भी तो कैसे! भ्रष्टाचार के आरोप में दिल्ली सीएम केजरीवाल जेल में हैं वहीं झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी सलाखों के पीछे हैं। केजरीवाल और सोरेन की पत्नियां क्रमशः सुनीता केजरीवाल और कविता सोरेन ने अपने-अपने पतियों का चेहरा बनकर विभिन्न मंचों पर 'अवतरित' हो रही हैं। जनता सबकुछ देख, समझ रही है और चुनावों में अपनी वोट का चोट करने के लिए तैयार है। देखना होगा कि 'विपक्षी एकता' और भ्रष्टाचार का मुद्दा कौन सा मोड़ लेता है और 4 जून को किसके सिर सेहरा बंधता है